पटना. बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Ban in Bihar) को लेकर सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) एक बार फिर से विपक्ष के निशाने पर हैं. देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा (CJI NV Ramana) के शराबबंदी कानून पर दिए एक बयान के बाद विपक्ष हमलावर हो गई है. बता दें कि सीजेआई रमणा ने बिहार में लागू शराबबंदी कानून को ‘अदूरदर्शी’ फैसला बताते हुए कहा है कि इससे अदालतों में केस का अंबार लग गया है. सीजेआई के इस टिप्पणी के बाद बिहार में विपक्षी पार्टियां खासकर आरजेडी (RJD) ने इसे भुनाना शुरू कर दिया है. आरजेडी नेता बिहार के सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर सीजेआई के इस बयान के बाद निशाना साधना शुरू कर दिया है. आरजेडी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निशाना साधते हुए कहा है कि सीजेआई ने नीतीश कुमार को आईना दिखाया है.
बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने ये बातें विजयवाडा में सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में भारतीय न्यायपालिका और भविष्य की चुनौतियां विषय पर आयोजित एक सेमिनार में कहीं. सीजेआई ने नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद बिहार के अदालतों में केस का अंबार लग गया है. उन्होंने कहा कि देश की अदालतों में केसों का ढेर लगने के पीछे बिहार के शराबबंदी कानून जैसे फैसले ही जिम्मेवार हैं. ऐसे कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी होती है. बिहार मद्यनिषेध कानून- 2016 लागू होने के कारण पटना हाईकोर्ट में जमानत के आवेदनों से भरा हुआ है. इस वजह से एक सामान्य जमानत की अर्जी के निपटारे में एक साल का वक्त लग रहा है.

समाज सुधार अभियान के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के विरुद्ध 22 दिसंबर से प्रदेश भर की यात्रा कर रहे हैं
बिहार में शराबबंदी कानून क्यों है ‘अदूरदर्शी’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकारों का चाहिए कि कानूनों को पारित करने से पहले उनके प्रभाव का मूल्यांकन और संवैधानिकता की बुनियादी जांच करे. कानून बनाने में अगर दूरदर्शिता की कमी होगी तो इसका परिणाम सीधे अदालतों के कामकाज पर ही पड़ेगा. इसलिए कानून बनाने से पहले उस पर विचार और बहस होना चाहिए. बिना ठोस विचार के लागू कानून मुकदमेबाजी की भीड़ बढ़ाते हैं.
ये है शराबबंदी कानून का साइड इफेक्ट
बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुनिल पांडेय कहते हैं, ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार में शराबबंदी कानून आने के बाद से ही अदालतों में मुकदमों का हर दिन अंबार लग रहा है. हर रोज गिरफ्तारियां हो रही हैं. इधर सीएम समाज सुधार अभियान के तहत शराबबंदी के विरुद्ध 22 दिसंबर से प्रदेश भर की यात्रा कर रहे हैं. बिहार सरकार ने लाखों की तादाद में शराब से जुड़े मुकदमे दर्ज किए हैं. पिछले दो-तीन महीनों में तो इसमें खासा बढ़ोतरी देखने को मिला है. पिछले दिनों ही पटना हाईकोर्ट ने जब शराब से जुड़े लाखों मामलों की सुनवाई पर रोष व्यक्त किया तो बिहार सरकार ने हर जिले में शराब के लिए स्पेशल कोर्ट बना दिया. लेकिन, स्पेशल कोर्ट से बेल रिजेक्ट होने या ट्रायल में सजा होने के कारण मामले फिर से हाईकोर्ट पहुंच रहे हैं. लिहाजा, पटना हाईकोर्ट बेल आवेदनों के बोझ तले लगातार दबती जा रही है. ऐसे में सीजेआई के इस बयान के कई मायने हैं.’

पिछले महीने ही सीएम नीतीश कुमार ने अपने साथ-साथ मंत्रियों और अधिकारियों को भी शराब नहीं पीने की शपथ दिलाई थी.
विपक्ष क्यों हो रही हमलावर
वहीं, आरजेडी नेताओं का आरोप है, ‘नीतीश कुमार को देश के प्रधान न्यायाधीश ने भी अब आईना दिखा दिया है. नीतीश कुमार अपनी जिद के कारण बिहार का बेड़ा गर्क कर रहे हैं. जिला अदलतों से लेकर हाईकोर्ट तक इस फैसले के कारण केसों का अंबार लग गया है. शराबबंदी कानून की आड़ में बिहार में एक समांतर इकोनॉमी खड़ी कर दी गई है. गरीब जेल में डाल दिए जा रहे हैं और अमीरों के घर में शराब की होम डिलेवरी हो रही है और माफिया खुलेआम शराब बेच रहे हैं.’
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बिहार की मौजूदा हालात ये है कि सिर्फ पिछले एक महीने में ही सरकार ने शराब रखने या पीने के आरोप में 11 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. इसलिए बिहार की सारी जेलों में इस वक्त इस कानून के उल्लंघन करने के आरोप में कई हजार लोग बंद हैं. बिहार का सबसे बड़ा जेल पटना का बेऊर जेल इसका उदाहरण है, जहां कैद साढ़े पांच हजार कैदियों में से तकरीबन आधा सिर्फ इस कानून के उल्लंघन के आरोपी हैं. बिहार सरकार ने पिछले आठ-नौ महीने के दौरान लगभग 50 हजार लोगों को शराब पीने या बेचने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाला है.
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