बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट जस्टिस संजय के अग्रवाल के सिंगल बेंच ने अनुकम्पा नियुक्ति के संबंध में ऐतिहासिक फैसला दिया है. ससुर की मौत के बाद पुत्र वधू (बहू) की अनुकंपा नियुक्ति को लेकर एक बड़ा फैसला आया है. इसमें हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा कर्मी राज्य के अधीन सिविल पद धारण नहीं करते. इसलिए वे शासकीय सेवक नहीं हैं और इस आधार पर अनुकंपा नियुक्ति को रद्द नहीं किया जा सकता. ससुर की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने वाली मृतक की पुत्र बधू की याचिका पर कोर्ट ने फैसला दिया है.
हाई कोर्ट ने यह सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए याचिकाकर्ता पुत्रवधू के पति एवं जेठ जो कि वर्ष 2020 में उनकी सेवा के संविलियन के पूर्व शिक्षा कर्मी के रूप में कार्यरत थे, जो कि याचिकाकर्ता की ससुर के मृत्यु दिनांक 16 दिसंबर 2018 एवं आवेदन दिनांक 7 जनवरी 2019 को शासकीय सेवा की परिभाषा में नहीं आते हैं. अतः याचिककरती के अनुकम्पा नियुक्ति निरस्ती आदेश अवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया गया और शासन को आदेशित किया गया है कि याचिककरती की तत्काल सेवा बहाल करते हुए सम्पूर्ण सेवा संबंधित समस्त लाभ देंने का निर्देश दिया है.
इस मामले में कोर्ट का फैसला
याचिकाकर्ता के वकील एएन भक्ता ने बताया कि स्व. मनमोहन सिंह सूरजपुर जिले में ब्लाक एजुकेशन ऑफिसर का पद पर पदस्त थे. सेवाकाल के दौरान 2018 में उनकी मृत्यु हो गई. राज्य शासन के परिपत्र दिनांक 2016 के अनुसार यह प्रावधान है कि ससुर की मृत्यु उपरांत अगर घर पर कोई शासकीय सेवक नहीं है तो पुत्रवधू अपने ससुर की जगह अनुकम्पा नियुक्ति की पात्र होगी. 2019 में मृतक मनमोहन सिंह की पुत्र वधू स्वेता सिंह ने जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बिलासपुर में अनुकंपा के लिए आवेदन किया. शासन के 2016 के परिपत्र अनुसार स्वेता सिंह को शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला लाखासार बिलासपुर में सहायक ग्रेड -3 में नियुक्ति दे दी गईं. इस बीच स्वेता की नियुक्ति को रजनीश साहू नामक व्यक्ति ने शासन को एक शिकायत पत्र भेज कर अवगत कराया कि स्वेता के परिवार में उनके पति और जेठ दोनों शासकीय सेवक हैं. शिकायत के आधार पर बिलासपुर जिला शिक्षा अधिकारी ने स्वेता सिंह के अनुकम्पा नियुक्ति को रद्द कर दिया गया.
हाई कोर्ट में दायर की याचिका
शिक्षा अधिकारी के फैसले के खिलाफ स्वेता सिंह ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उनके पति शिक्षा कर्मी वर्ग -1 की नियुक्ति वर्ष 2010 में और जेठ की शिक्षा कर्मी वर्ग -2 की वर्ष 2013 में नियुक्ति हुई. जबकि शिक्षा कर्मियों का संविलियन वर्ष 2020 में किया गया. इसके पहले ससुर के निधन वर्ष 2018 के बाद उसने वर्ष 2019 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया. आवेदन दिनांक तक उनके पति और जेठ दोनों शासकीय सेवक की श्रेणी में नहीं आते थे. लिहाजा वह अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है. मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने याचिककरती के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसके तत्काल बहाली का बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.
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